शनिवार, 9 अप्रैल 2016

अंगिका भाषा( Angika )

अंगिका भाषा

अंगिका भाषा का इतिहास

          अंगिका अंग देश की भाषा छिय । अंगिका के बारे में बात करने से पहले अंग प्रदेश की बात करते हैं। अंग का पहला जिक्र गांधारी, मगध और मुजवत के साथ अथर्व वेद में आता है। गरुड़ पुराण, विष्णु धर्मोत्तर और मार्कंडेय पुराण प्राचीन जनपद को नौ भागों में बांटते हैं...इसमें पूर्व दक्षिण भाग के अंतर्गत अंग, कलिंग, वांग, पुंडर, विदर्भ और विन्ध्य वासी आते हैं।
                                बुद्ध ग्रन्थ जैसे अंगुत्तर निकाय में अंग १६ महाजनपद में एक था। अंग से जुड़ी हुयी सबसे प्रसिद्धि कहानी महाभारत काल की है। पांडव और कौरव जब द्रोणाचार्य के आश्रम से अपनी शिक्षा पूर्ण करने लौटते हैं तो अर्जुन के धनुर्विद्या कौशल का प्रदर्शन देखने के लिए प्रजा आती है...यहाँ वे अर्जुन का प्रदर्शन देख कर दंग रह जाते हैं. पर तभी भीड़ में से एक युवा निकलता है और अर्जुन के दिखाए सारे करतब ख़ुद दिखाता है और अर्जुन से प्रतियोगिता करना चाहता है. द्रोणाचार्य ये देख चुके थे कि वह युवक बहुत प्रतिभाशाली है और अर्जुन को निश्चय ही हरा देगा...इसलिए वह उससे उसका कुल एवं गोत्र पूछते हैं यह कहते हुए कि राजपुत्र किसी से भी नहीं लड़ते...

                                दुर्योधन ये देख कर अपनी जगह से उठता है और उसी वक्त कर्ण को अंग देश का राजा घोषित करता है...यह कहते हुए कि अब तो प्रतियोगिता हो सकती है। द्रोणाचार्य तब भी उसके कुल के कारण उसे एक राजपुत्र का प्रतियोगी नहीं बनने देते हैं. कर्ण को सूतपुत्र कहा जाता है जबकि वास्तव में वह कुंती का पुत्र होता है जिसका कुंती ने परित्याग कर दिया था क्योंकि वह उस समय पैदा हुआ था जब कुंती कुंवारी थी. यहाँ से दुर्योधन और कर्ण की मैत्री शुरू होती है जिसे कर्ण अपनी मृत्यु तक निभाता है...क्योंकि दुर्योधन ने उसका उस वक्त साथ दिया था जब सारे लोग उसपर ऊँगली उठा रहे थे.
                              महाभारत और मसत्य पुराण में लिखा है की अंग प्रदेश का नाम उसके राजकुमार (कर्ण नहीं) के कारण पड़ा...जिसके पिता दानवों के सेनापति थे। प्राचीन काल में अंग प्रदेश की राजधानी चंपा थी...भागलपुर के पास दो गाँव चम्पापुर और चम्पानगर आज उस चंपा की जगह हैं। रामायण और महाभारत काल में अंग देश की राजधानी भागदत्त पुरम का जिक्र आता है...यही वर्तमान भागलपुर है। अंग प्रदेश वर्तमान बिहार झारखण्ड और बंगाल के लगभग ५८,००० किमी स्क्वायर एरिया के अंतर्गत आता है। 
                                                                                 तो ये हुयी अंग प्रदेश की बात...यहाँ की भाषा को अंगिका कहते हैं। अंगिका भाषी भारत में लगभग ७ लाख लोग हैं. इस भाषा का नाम भागलपुरी इसकी स्थानीय राजधानी के कारण पड़ा इसके अलावा अंगिका को अंगी, अंगीकार, चिक्का चिकि और अपभ्रन्षा भी बोलते हैं. अंगिका की उपभाषाएं देशी, दखनाहा, मुंगेरिया, देवघरिया, गिध्होरिया, धरमपुरिया हैं. अक्सर भाषा का नामकरण उसके बोले जाने के स्थान से होता है।  प्राचीन समय में अंगिका भाषा की अपनी एक स्वतंत्र लिपि अंग थी। 

अंगिका भाषा क्षेत्र

                                  अंगिका मुख्य रूप से प्राचीन अंग यानि भारत के उत्तर-पूर्वी एवं दक्षिण बिहार, झारखंड, बंगाल, आसाम, उङीसा और नेपाल के तराई के इलाक़ों मे बोली जानेवाली भाषा है। यह मैथिली की एक बोली के तौर पर जानी जाती है। इसका यह प्राचीन भाषा कम्बोडिया, वियतनाम, मलेशिया आदि देशों में भी प्राचीन समय से बोली जाती रही है। अंगिका भाषा आर्य-भाषा परिवार का सदस्य है और भाषाई तौर पर बांग्ला, असमिया, उड़िया और नेपाली, ख्मेर भाषा से इसका काफी निकट का संबंध है। प्राचीन अंगिका के विकास के शुरूआती दौर को प्राकृत और अपभ्रंश के विकास से जोड़ा जाता है। लगभग 1.5 से 2 करोड़ लोग अंगिका कोमातृ-भाषा के रूप में प्रयोग करते हैं और इसके प्रयोगकर्ता भारत के विभिन्न हिस्सों सहित विश्व के कई देशों मे फैले हैं। भारत की अंगिका को साहित्यिक भाषा का दर्जा हासिल है। अंगिका साहित्य का अपना समृद्ध इतिहास रहा है और आठवीं शताब्दी के कवि सरह या सरहपा को अंगिका साहित्य में सबसे ऊँचा दर्जा प्राप्त है। सरहपा को हिन्दी एवं अंगिका का आदि कवि माना जाता है।

अंगिका भाषा का ई-करण

                                अंगिका में लिखित एवं अलिखित दोनों ही तरह के साहित्य प्रचुर मात्र में उपलब्ध है। 
आज जब लग रहा है की कई भाषा ई-दुनिया के कारण अपनी दम  तोड़ रही है ,तो अंगिका इससे परे अपनी 
मौजूदगी इंटरनेट पर दर्ज करवा ली है।  इसका श्रेय कुंदन अमिताभ को जाता है , जिन्होंने सन २००३ ई में 
अंगिका.कॉम  वेब पोर्टल की शुरुआत की। 
                                 साथ ही कुंदन अमिताभ के सहयोग से विश्व के अव्वल दर्जे का सर्च इंजन 
गूगल.कॉम अंगिका भाषा में २००४ से उपलब्ध है। 
                                 ई-दुनिया में एक दशक से ज्यादा दिन होने के बाद भी अंगिका भाषा का ज्यादा ई-करण नहीं होने का कारण अंगिका भाषा जानने वाले तकनीशियन का कमी या अंगिका भाषा जानने वाले ई-विशेषज्ञ में अपने मातृभाषा के प्रति समर्पण का कमी। 
                              
                                   उपरोक्त दी गई  जानकारी किसी ब्लॉग या साइट से ली गई है। 

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